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जातीय जनगणना पर बीजेपी के सुर बदले

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बिहार——

पटना: मिली जानकारी के मुताबिक जातीय जनगणना पर आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी सदस्यों के साथ पीएम से मिलने दिल्ली गये हुये हैं। इसी बीच पीएम से मुलाकात से ठीक पहले बीजेपी के सुर बदलने की बात सामने आ रही है।
जातिगत जनगणना कराने पर पहले जहां बीजेपी की ओर से कठिनाई बताई जा रही थी। वहीं आज पीएम मोदी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के 10 विपक्षी दलों के नेताओं के मुलाकात से पहले रविवार संध्या में भाजपा ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सैद्धांतिक सहमति व्यक्त की है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मुलाकात करने वालों में राजद से तेजस्वी यादव, जदयू से विजय कुमार चौधरी, भाजपा से जनक राम सहित सभी 10 विपक्षी दलों के नेता शामिल हैं।
हालांकि भाजपा की ओर से किसी ओबीसी नेता को नहीं भेजकर पहली बार मंत्री बने जनक राम को भेजने से असंमजस की स्थिति बनी हुई थी। हालांकि भाजपा नेता सुशील मोदी द्वारा जातिगत जनगणना के पक्ष में स्टैंड क्लियर करने से असंमजस की स्थिति छंटती हुई दिखाई दे रही है। बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एकसाथ कई ट्वीट कर सफाई दी है।
उन्होंने याद दिलाते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर बिहार विधानसभा हो या फिर विधानपरिषद भाजपा ने अपना समर्थन दिया है। इस मुद्दे पर लोकसभा में भी स्व.गोपीनाथ मुंडे ने 2011 में भाजपा का स्टैंड साफ कर दिया था। जानकारों द्वारा सुशील मोदी के ट्वीट का यह अर्थ निकाला जा रहा है कि पार्टी में जो उहापोह की स्थिति बनी हुई है उससे निकलकर भाजपा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनजर अब पीछे नहीं रहना चाहती।
सुशील मोदी का कहना है कि भाजपा कभी जातीय जनगणना का विरोधी नहीं रही है। इसका प्रमाण यह है कि विधानसभा और विधानपरिषद में जातीय जनगणना के पक्ष में पारित प्रस्ताव का भाजपा भी हिस्सा रही है। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलनेवालों में भाजपा भी शामिल है। वर्ष 2011 में भाजपा के स्व.गोपीनाथ मुंडे ने जातीय जनगणना के पक्ष में लोकसभा में भाजपा का पक्ष रखा था।
तब केन्द्र सरकार के निर्देश पर ग्रामीण विकास और शहरी विकास मंत्रालयों द्वारा सामाजिक, आर्थिक और जातीय सर्वेक्षण कराया गया तो उसमें बहुत ज्यादा त्रुटियां पाई गई। जातियों की संख्या लाखों में पहुंच गई।भारी गड़बड़ियां पाई जाने के कारण केन्द्र सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया और न वह सेंसस या जनगणना का हिस्सा बना।
उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि ब्रिटिश सरकार में 1931 में अंतिम बार जनगणना के समय बिहार, झारखंड और ओडिशा एक ही राज्य था। उस समय बिहार की लगभग 1 करोड़ की आबादी में केवल 22 जातियों की जनगणना की गई थी। अब 90 साल बाद सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थितियां बदल चुकी हैं। इस कारण जातीय जनगणना कराने में अनेक तकनीकी और व्यवहारिक कठिनाइयां हैं फिर भी भाजपा सैद्धांतिक रूप से जातीय जनगणना के पक्ष में है।
सुशील मोदी को पता है कि आनेवाले चुनाव में जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आनेवाली है। वैसे भी बीजेपी के सभी ओबीसी नेता चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो और उनकी इच्छा है कि भाजपा खुलकर जातीय जनगणना का समर्थन करे।ऐसे में भाजपा अपना चेहरा ओबीसी विरोधी नहीं होने देना चाहेगी। इसी कारण सुशील मोदी ने बड़ी बारीकी से एक तरफ जातीय जनगणना के समर्थन में सैद्धांतिक सहमति जताई है और दूसरी तरफ सरकार की मजबूरियों को भी सामने रखा है। अब सभी की निगाहें प्रधानमंत्री से हो रही मुलाकात पर लगी हुई है।
जे.पी.श्रीवास्तव,
ब्यूरो चीफ, बिहार।