संपादकीय : गोस्वामी अरुण गिरि
राजनीति के लिए जाती ,,या जाति के लिए राजनीति ?
क्या दरक रहा है पंकज चौधरी के वोट बैंक का किला ?
देश के सबसे बड़े सूबे का नेपाल सीमा से लगा सबसे अंतिम जिला या लोकसभा क्षेत्र महाराजगंज ,दिनांक 2 अक्टूबर 1998 को गोरखपुर को काटकर जनपद महाराज का सृजन हुआ ,पांच विधान सभा क्षेत्र को संजोए ये तराई क्षेत्र घनी आबादी का बसेरा है, जिसमें मुख्यतः सभी जाति धर्म के लोग निवास करते हैं पर मुख्यतः पिछड़े वर्ग के लोगों की बहुलता है l
राजनीतिक रूप से इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व तो कई वर्गों के तमाम लोगों ने किया है पर इस क्षेत्र में अगर अपना सबसे अधिक विश्वास व समर्थन देकर किसी को राजनीतिक ऊंचाई प्रदान कर देश के बड़े राजनीतिक श्रेणी में शामिल किया है तो वह एक नाम आता है पिछड़े वर्ग के बड़े नेता पंकज चौधरी का जोकि कुर्मी समुदाय का एक बड़ा नाम बड़े नेता के रूप में जाने पहचाने जाने वाले मौजूदा सांसद व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भारत सरकार हैं l
भारतीय जनता पार्टी से नौ बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले पंकज चौधरी को सात बार महाराजगंज की जनता ने विजय श्री का आशीर्वाद दिया है और उनके इस बेहतरीन ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए पार्टी ने लगातार दूसरी बार केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री के पद से सुशोभित किया है l
मौजूदा दौर में पंकज चौधरी देश मे बड़ा कुर्मी चेहरा माने जाते हैं और देश के बड़ी राजनीतिक शख्सियत के रूप में पहचाने जाते हैं और उनकी इस कद और पद का सबसे बड़ा आधार है महाराजगंज के कुर्मी वोटर जो ना सिर्फ जिले की कई विधान सभा चुनावों मे विधानसभा चुनाव की दिशा दशा तय करते हैं बल्कि लोकसभा चुनाव की विजय की रेखा भी इनके द्वारा खींची जाती है l
जिले का कुर्मी वोटर का इकट्ठा होना और कुर्मी नेता पंकज चौधरी के साथ समर्पित रहना यह पंकज चौधरी की सबसे बड़ी ताकत है l
तमाम परिस्थितियों में भी पंकज का साथ कुर्मी वोटर नहीं छोड़ता है, यह पंकज चौधरी की कुशलता कहीं जा सकती है कि वह हर हाल में अपने वर्ग का वोट साध लेते हैं, या फिर दूसरे पहलू से यह कह सकते है कि जिले के कुर्मी बिरादरी का अपने वर्ग के नेता के साथ लगाव है कि किन्ही कारणों से पंकज से नाराज वह असंतुष्ट कुर्मी वोटर जो भले पंकज की आलोचना तो करते हैं पर चुनाव के समय अपना मत उन्हीं को सौंप देते हैं l
बीते लोकसभा चुनाव में विरोधी गठबंधन दल की इस जातिगत समीकरण पर नजर पड़ी और पंकज चौधरी के विरोध में सजातीय फरेंदा विधायक वीरेंद्र चौधरी को लोकसभा प्रत्याशी के रूप में उतारा गया ताकि पंकज की इस बड़ी वोट बैंक को तोड़ा जा सके l
और इस पैंतरे का असर इस तरह दिखा कि जो असंतुष्ट या नाराज कुर्मी वोटर पंकज को छोड़ कहीं और नहीं जाते थे उन्हें अपनी बिरादरी के वीरेंद्र चौधरी के रूप में एक दूसरा ऑप्शन मिल गया और वो डायवर्ट हो गए l
राजनीतिक पंडितों की माने तो यह ऑप्शन आगे समय में पंकज चौधरी के इस विशेष वोट बैंक के लिए खतरा बन सकता है ,जिसका अंदाजा जरूर पंकज को भी है और वह भविष्य के इस डैमेज कंट्रोल के लिए अभी से लगे भी दिख रहे हैं l
राजनीतिक जानकारो व पंकज के राजनितिक विपक्षी नेताओं की सुने तो उनका कहना यह है कि “पंकज चौधरी भले कुर्मी वोटो से विजई होते आए हैं पर वह कभी अपनी जाति या समाज के लिए राजनीति नहीं करते बल्कि अपनी राजनीति के लिए जाति का उपयोग करते रहें है, लगातार पद पर रहते हुए भी पंकज चौधरी अपनी कुर्मी बिरादरी को नजरअंदाज करते रहे हैं ,वह इस भ्रम में रहे हैं की बिरादरी नाराज होकर भी कहीं नहीं जाएगी, पर अब वीरेंद्र के रूप में कुर्मी समुदाय के पास एक ऑप्शन मौजूद है ”
जिले का कुर्मी वोट बैंक अभी निसंदेह पंकज के साथ है पर बनती बिगड़ती परिस्थितियों में कुर्मी समुदाय के कुछ नेता भी पंकज से नाराज दिखते हैं तो समुदाय के आम जन भी यह शिकायत करते पाए जाते हैं कि सांसद बिरादरी से जीतते तो हैं पर बिरादरी पर ध्यान नहीं देते l
जिले के लोगो मे यह चर्चा भी सुनी जाती रही है कि सांसद जी की गैर मौजूदगी में उनके आवास व कार्यालय से आम जनता की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ पर्सनल स्टाफ रखे गए हैं जिनमें कोई भी अधिकृत व्यक्ति कुर्मी बिरादरी का नहीं दिखता ,,इससे भी काफी नाराजगी कुर्मी वोटरो में देखी व सुनी गई है कि उन्ही के नेता के यहां उनका दुख दर्द सुनाने और समझने वाला उनका कोई अपना नहीं है l
कुर्मी समुदाय व अन्य पिछड़े वर्गों के तमाम लोगों को यह कहते सुनते देखा गया है कि आवासीय कार्यालय पर मंत्री जी की अनुपस्थिति में सुचारू रूप से उनकी सुनने वाला उनका अपना कोई नही है ,,और ऐसी स्थिति में कुर्मी वोटर खुद को ठगा महसूस करते हैं l
साथ ही राजनितिक क्षेत्र में उन्ही के पार्टी के कुछ मौजूदा व पूर्व बिधायक,ब्लॉक प्रमुख और चेयरमैन भी अपनी राजनितिक महत्वकांछा व अन्य कारणो से पंकज चौधरी से दूर होते दिख रहे हैं l
ऐसी हालत में क्या यह जातिगत समीकरण यथावत रह पाएगा साथ ही यह प्रश्न है कि क्या मौजूदा राजनीति परिपेक्ष में जाति (समुदाय) समाज ब देश के लिए राजनीति है या राजनीति के लिए जातीl