विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस और मानवाधिकार का कर्तव्य
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जेपी श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ, बिहार
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 15 मार्च को मनाया जाता है। वर्ष 2022 का थीम है”फेयर डिजिटल फाइनेंस”। इसका उद्देश्य है उपभोक्ताओं को उनके अधिकार और जरुरतों के विषय में जागरुक करना। ताकि वे अपने प्रति हो रहे धोखाधड़ी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ सकें।
उपभोक्ताओं को नापतोल में गड़बड़ी, मनमाने दाम वसूलना,सामान की बिक्री के बाद उसकी गारंटी नहीं देना,नकली सामान की बिक्री,ठगी, बिक्री किये गये सामान का रसीद नहीं देना आदि बातों के लिए उनमें जागरूकता पैदा करना इसके मुख्य उद्देश्य में शामिल है।
जैसा कि हम सभी को जानकारी है, विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा वर्ष 1962 में की गई थी और 15 मार्च 1983 से लगातार यह दिवस मनाया जा रहा है।
वस्तुत: उपभोक्ता उसे कहते हैं जो भुगतान करते हुए वस्तुओं या सेवाओं को खरीदता है। बताते चलें कि उपभोक्ता ही बाजार के रीढ़ होते हैं। बाजार की रौनक,बड़े-बड़े उद्योगपतियों, दुकानदारों आदि का बाजार में टिके रहना, उपभोक्ताओं की खरीददारी पर ही निर्भर करता है। परन्तु यह कटु सत्य है कि सबसे अधिक शोषण उपभोक्ताओं का ही होता है। इतिहास गवाह है कि वर्ष 1960 में अंतरराष्ट्रीय निगमों के प्रभुत्व वाले वैश्विक बाजार में उपभोक्ताओं के लिए एक निष्पक्ष, सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य के लिए कंज्यूमर इंटरनेशनल की स्थापना की गई थी।
आज कंज्यूमर इंटरनेशनल का फैलाव 100 देशों में हो चुका है और इसके सदस्यों की संख्या 200 से अधिक की हो चुकी है। वैश्विक बाजार में उपभोक्ताओं के लिए यह नीति निर्माण मंचों और उपभोक्ताओं के लिए आवाज बनने के अपने मिशन के साथ आगे बढ़ रहा है। कंज्यूमर इंटरनेशनल राजनीति से बाहर रहकर अपनी स्वतंत्रता बनाये रखते हुए उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में लगा हुआ है। ताकि उपभोक्ताओं के साथ उचित व्यवहार सुनिश्चित किया जा सके।
मिली जानकारी के अनुसार उपभोक्ता इंटरनेशनल के लिए काम करने वाले उपभोक्ता अधिकार कार्यकर्ता “अनवर फजल” ने 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रुप में मनाने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से मान लिया गया।
मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय आयोग जो एक गैर सरकारी संगठन है और जिसका निबंधन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली द्वारा तथा भारत सरकार के नीति आयोग द्वारा किया गया है,इसके संकल्प में यह अंकित है”मानवाधिकार की रक्षा करना तथा सामाजिक न्याय दिलाना”। इस संगठन द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को उनके अधिकार के प्रति जागरूक करने का कार्य किया जाता रहा है। भारत सरकार और राज्य सरकारें उपभोक्ता संरक्षण कानून के माध्यम से उपभोक्ताओं को राहत दिलाने का कार्य कर रही है।
कहा जा सकता है कि “जागो ग्राहक जागो” नारा बहुत हद तक सफल होता हुआ दिखाई दे रहा है। वर्तमान समय में उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी मिलते रहने के कारण उन्हें ठगने,उनके अधिकार से उन्हें वंचित करने का कार्य बहुत हद तक शिथिल पड़ता जा रहा है।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत 1966 में महाराष्ट्र से हुई थी और 1974 में पुणे में ग्राहक पंचायत की स्थापना की गई थी। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे भारत में बढ़ता गया। तभी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 9 दिसंबर 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाने का प्रस्ताव संसद में लाया और 9 दिसंबर 1987 को यह विधेयक पारित हुआ और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अधिनियम बन गया। कहा जा सकता है कि उपभोक्ताओं के हित में यह बहुत बड़ा कदम था।
आइये हम सब मिलकर उपभोक्ताओं को मिले कानूनी संरक्षण की जानकारी उनतक पहुंचाने का पुनीत कार्यकरें ताकि उन्हें ठगी का शिकार होने,उनका शोषण होने से उन्हें बचाया जा सके।
लेखक मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय आयोग (ट्रस्ट) का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सहित इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन का इंटरनेशनल वाइस-चेयरमैन का पद भी धारित करता है।
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