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जेपी श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ, बिहार
संगीत कला के क्षेत्र में भारतवर्ष ही नहीं विदेशों में भी अपनी संगीत के स्वर को विखेरनेवाली, भारतवर्ष के कोने-कोने में सभी के दिलों में अपना स्थान बनाने वाली, अतुलनीय देश प्रेम से ओतप्रोत,संगीत की दुनिया में स्वर्णिम अध्याय कायम करने वाली,भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित और भी अनेकों पुरस्कार से सम्मानित परम आदरणीया लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। संगीत कला के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में असम्भव है।
आइए कुछ बातें आप सभी के साथ उस महान हस्ती के विषय में जानी जाये। लता मंगेशकर जी का जन्म 29 सितम्बर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था। लता मंगेशकर के अलावे उनकी तीन बहनें और एक भाई हैं जिनका नाम मीना खडीकर,आशा भोसले और उषा मंगेशकर है। बताते हैं कि पिताजी की असामयिक मृत्यु के बाद मात्र 13 वर्ष के उम्र में ही उनके परिवार का बोझ उनके उपर आ गया। परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपने कैरियर की तलाश कुछ हिन्दी और मराठी फिल्मों में काम करना शुरू किया। फिल्मों में अभिनय करना उन्हें पसंद नहीं था। हालांकि अभिनेत्री के रूप में लता जी की पहली फिल्म”पाहि मंगलागौर” थी।
कुछ अन्य फिल्मों में भी उन्होंने काम किया। परन्तु उनका जन्म तो संगीत की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ने के लिए हुआ था। वर्ष 1948 में जब लता जी ने संगीत की दुनिया में कदम रखा तो उस समय संगीत की दुनिया में कुछ नामचीन कलाकारों की तूती बोलती थी। उनमें नूरजहां,शमशाद बेगम,अमीरबाई कर्नाटकी जैसी गायिकाओं ने अपनी अमिट छाप छोड़ रखी थी। उस समय लता जी को अपनी पहचान बनाने में थोड़ी मुश्किल जरूर हुई।
लेकिन कहते हैं न जिन्हें मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो,जिनके कंठ में सरस्वती का निवास हो, उन्हें भला कहां किसी पहचान की आवश्यकता होती है। यही लता जी के साथ भी हुआ। प्रतिभा की धनी लता मंगेशकर जी को छह विश्वविद्यालयों ने डाॅक्टरेट की डिग्री प्रदान कर रखी है। परन्तु वस्तुत: उन्होंने ज्यादा पढाई नहीं की थी। उनके बचपन का नाम हेमा था।उनके संगीत शिक्षकों में गुलाम हैदर,अमानत खान देवस्वाले, पंडित तुलसीदास शर्मा का नाम आता है।
वैसे देखा जाए तो पार्श्वगायिका के रुप में लता जी को पहचान दिलाने वाले उनके गुरु उस्ताद गुलाम हैदर थे। कहते हैं कि शिष्य को पहचानने की कला सबसे ज्यादा गुरु में होती है। इसे सिद्ध कर दिखाया लता जी के गुरु उस्ताद गुलाम हैदर ने। लोगों का यह मानना था कि लता जी की आवाज़ बहुत पतली है,एसे में वे पार्श्वगायिका नहीं बन सकतीं हैं। लेकिन इसे गलत साबित करने का बीड़ा उठाया उस्ताद गुलाम हैदर ने, और लता जी एक प्रसिद्ध पार्श्वगायिका बन गई।
बताते हैं कि 1948 में गुलाम हैदर साहब ने लता जी से एक गाना फिल्म “मजबूर” में गवाया “दिल मेरा तोड़ा” था। यह गाना लता जी के ज़िन्दगी का पहला हिट गाना था। इसके बाद 1949 में फिल्म “महल” में एक गाना “आयेगा आनेवाला” गवाया जो सुपर-डुपर हिट हुआ।इसके बाद से लता जी ने पिछे मुड़कर कभी नहीं देखा। उन्होंने लगभग 20 भाषाओं में कुल 30,000 हजार गानों को अपना सुर दिया है, जिसके आज भी लोग कायल हैं।
बताया जाता है कि पचास के दशक में लता जी ने महान संगीतकारों के साथ काम किया जिसमें एस डी बर्मन, जय किशन, अनिल विश्वास,मदन मोहन और नौशाद अली आदि शामिल थे। किशोर दा के साथ गाये उनके एक गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं,वह गाना है”होंठों पे ऐसी बात”। यह गाना बेहद प्रसिद्ध हुआ।
आज लह सुर साम्राज्ञी,सुर कोकिला हमें छोड़कर इस असार-संसार से विदा हो गईं। परन्तु जबतक यह पृथ्वी रहेगी उनके गाये गीत हमेशा गूंजती रहेगी और वे हमारे बीच यादगार के रूप में हमेशा बनी रहेंगी।
सुर थम गये,ऑंखे नम हो गईं, मां सरस्वती ने करिश्मा कर दिखाया। आज अपनी विदाई के साथ अपने प्रिय पुत्री को विदा करा ले गईं। उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
