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राजनीति में दोस्ती कभी फायदेमंद तो कभी भारी सुशील मोदी हुए दोस्ती के शिकार

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बिहार—-

जे.पी.श्रीवास्तव, बिहार

पटना:देश की आजादी के समय से प्रायः ऐसा होता आया है कि राजनीतिक दोस्ती कभी नेताओं को बहुत ऊंचा उठा देता है तो कभी भारी नुक़सान पहुंचा देता है। सुशील मोदी और नीतीश कुमार की दोस्ती पिछले कई वर्षों से जग जाहिर है। दोनों जब भी सत्ता में एक साथ रहे दोनों की दोस्ती परवान चढ़कर बोलती थी। बिहार में तो यहां तक चर्चाएं होती थी कि जो नीतीश कुमार कहेंगे उसका समर्थन आंख मूंद कर सुशील मोदी करेंगे।
भाजपा की पहचान बने पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को अपने राजनीतिक जीवन में फिर एकबार उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है।बड़े जोरों से इस बात की चर्चा चल रही थी कि सुशील मोदी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जरुर स्थान मिलेगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सूची से सुशील मोदी का नाम गायब था। राजनीति के जानकारों के बीच इस बात की चर्चा हो रही है कि नीतीश कुमार से नजदीकी होने का खामियाजा सुशील मोदी को भुगतना पड़ा है।
राजनीतिक गलियारे में पहले से ही इस बात की चर्चा होती रहती थी कि राजनीति में अगर एक बार कांटा चुभ जाये तो उसे निकालना ही बेहतर उपाय है। बड़े-बड़े जानकारों का भी यही मानना है कि सुशील मोदी का दौर अब बीत चुका है। यह बात और है कि जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के हिस्सा रहे सुशील मोदी को इसका बहुत लाभ मिल चुका है। लगातार कई वर्षों तक वे उपमुख्यमंत्री का पद सुशोभित करते रहे हैं।
याद करने वाली बात है कि जब केन्द्र में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार होने की चर्चा ज़ोर-शोर से चल रही थी तब बिहार में सुशील मोदी की पहचान नीतीश समर्थित नेता के रुप में थी। जाहिर सी बात है कि तब नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के विरोधी के रुप में उभरकर सामने आये थे। बिहार के भाजपा नेता भी कहते थे कि सुशील मोदी भाजपा के कम नीतीश के समर्थक ज्यादा हो गये हैं।
इस तरह की शिकायत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत गंभीरता से लेते हैं और समय पर उसका ठोस जवाब भी देते हैं। इसी का नतीजा हुआ कि पहले तो सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री पद से हटाया गया। फिर उन्हें बिहार की राजनीति से अलग-थलग करते हुए राज्य सभा में भेज दिया गया। राज्य सभा भेजने के बाद उनके शुभचिंतकों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि इस बार उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान जरुर मिलेगा। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। सारे कयास धरे के धरे रह गये। मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला।
भाजपा नेताओं का भी यही कहना है कि भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है। इसकी नीति सेवा और राष्ट्र निर्माण की रही है। यहां खुद की या किसी की इच्छा या आकांक्षा कोई मायने नहीं रखती है। भाजपा नेताओं का कहना है कि आजादी के बाद से दलित, आदिवासी,पिछड़े समाज को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में इतनी भागीदारी कभी नहीं मिली थी जितनी इस बार के मंत्रिमंडल में मिली है। नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सामाजिक न्याय के पक्ष में उठाये गये कदमों का दूरगामी राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। इससे देश की राजनीति को नई दिशा मिलेगी।
लब्बोलुआब यह कि सुशील मोदी को बिहार से बाहर कर पार्टी ने अपना कांटा साफ कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जादू पूरे देश में ऐसे ही नहीं चलती है। उनका निर्णय लेने की क्षमता,समय पर हर काम को करने की दूर दृष्टि काबिले तारीफ है।