बिहार——
पटना:विश्व की राजनैतिक पटल पर एक नया आयाम गढ़ दिया गया है। अफगानिस्तान पर तालीबान का कब्जा काफी जद्दोजहद के बाद हुआ है। अफगानिस्तान पर तालीबान के सत्ता संभालने से जहां कुछ देशों में खुशियां मनाई जा रही है, वहीं अधिकांश देशों द्वारा चिंता व्यक्त की जा रही है। ऐसा बताया जा रहा है कि तालीबान के तेवर पिछली बार की तुलना में कुछ अलग हैं। तालीबान की सत्ता में वापसी पर मुस्लिम नेताओं की राय अलग-अलग बंटी हुई है। कुछ नेता जहां तालीबान के बदले हुए तेवर से उम्मीद लगाए बैठे हैं,वही कुछ नेताओं का मानना है कि भारत को इस मामले में पूरी सतर्कता बरतते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
दिल्ली दिसंबर आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर जफरूल जलवायु के अनुरूप हैं। ???? बैट बैट यह कहा जाता है कि जब वह स्थिर रहेगा और अब स्थिर रहेगा। इसमें शामिल होने के साथ ही अन्य लोगों को भी शामिल किया गया था। गलत तरीके से दर्ज करने वाला और न लुटाने वाला। विदेशी हों या अफगानिस्तान के लोग जो लोग हवाई जहाज या जमीन के रास्ते देश छोड़ना चाहते हैं उन्हें वे लोग जाने दे रहे हैं।
तालीबान ने महिलाओं की शिक्षा पर भी कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। जफरुल इस्लाम का तर्क है कि तालीबान को हुकुमत करने का कुछ मौका दिया जाना चाहिए। डॉक्टर जफरुल इस्लाम का कहना है कि तालीबान ने अफगानिस्तान में भारत द्वारा किये गये विकास कार्यों की सराहना की है। वे हमारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। कश्मीर को लेकर भी हमें ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि 1990 के दशक में जिन लोगों ने कश्मीर में हालात खराब किये थे वे तालीबानी नहीं थे। या तो वे पाकिस्तानी थे या अरब के लोग थे। इनलोगों को अमेरिका ने अफगानिस्तान में रखा था। उनका कहना है कि भारत के खिलाफ तालीबान पाकिस्तान से गठजोड़ करे यह कदापि संभव नहीं है। तालीबानी यह कैसे भूल सकते हैं कि जनरल मुशर्रफ ने उन्हें छोड़ दिया और अमेरिकियों के सामने उन्हें फेंक दिया। इसके अलावा अफगानिस्तान के बड़े भू-भाग पर पाकिस्तान के साथ विवाद है।
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवेद हामिद कहते हैं ऐतिहासिक तौर पर देखें तो अमेरिका के साथ वही हुआ है जो ब्रिटेन और रुस के साथ हुआ है। सत्ता चलाने के संबंध में अपना विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले दो दशक तक अफगानिस्तान में स्थानीय लोगों का अधिकार हनन कर सरकार चलाई गई। पश्चिमी देशों के सैन्य शक्तियों के बल पर शासन करनेवाले भ्रष्ट और डरपोक नहीं होते तो बिना संघर्ष किये देश नहीं छोड़ते। उनका कहना है कि किसी भी देश का सत्ता कैसी हो यह उस देश का आन्तरिक मामला है, इसमें बाहरी लोगों का दखल नहीं होना चाहिए।
नवेद हामिद कहते हैं कि तालिबान का आना बेशक पूरे विश्व के लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन रखनेवालों के लिए चिंता का विषय है, परन्तु एक उम्मीद की किरण तालीबानों के बयानों और क्रियाकलापों से निकलती हुई दिखाई देती है। तालीबानी सबको साथ लेकर सबको मिलाकर चलने की बात कर रहे हैं।इसके साथ-साथ वे महिलाओं का सम्मान और उनके अधिकारों की सुरक्षा की बात कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि उनमें सचमुच कितना बदलाव हुआ है। फिर उनके क्रियाकलापों के आधार पर आगे की बात सोचनी चाहिए।
वहीं,शिया धर्म के मौलाना कल्बे रुशैद रिजवी कहते हैं कि तालिबान का अफगानिस्तान में आना अमेरिका के द्वारा लिखी गई पटकथा है। उन्होंने पूछा है कि तालिबानियों के पास आखिर ताकत कहां से आई है। तालिबानियों को किसने पोसा और पाला, दुबारा उसे सत्ता में लाने का काम किसने किया? यह मूल प्रश्न दुनिया के सामने है। उन्होंने इसे अमेरिका की सोची समझी साज़िश बताया है।
कल्बे रुशैद रिजवी कहते हैं कि अमेरिका तालिबान के जरिए उन देशों में अपना पैर पसारने की कोशिश करेगा जहां उसकी पकड़ कमजोर हुई है। तालीबान का आना सिर्फ अफगान और वहां के आवाम के लिए ही नहीं बल्कि कई देशों के लिए परेशानी का सबब बनेगा। तालीबान का अतीत दुनिया के लिए चिंता करनेवाली बात है। तालीबान के आने से अफगानिस्तान में वहाबियत को बढ़ावा मिलेगा,जिससे आतंकवाद को फ़ैलाने में मदद मिलेगी। ऐसे में मार-काट की घटनाएं न केवल अफगानिस्तान में घटेगी, बल्कि पड़ोसी देशों में भी आतंकी घटनाएं बढ़ेगी। इसमें ईराक, ईरान, पाकिस्तान के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंता बढ़ाने वाली बात होगी। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि इंसानियत को मानने वाले लोग कभी तालिबान का समर्थन नहीं कर सकते।
शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना सैफ अब्बास कहते हैं कि तालिबान आतंकी संगठन है जो न केवल अफगानिस्तान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि तालीबानी इस्लाम की बात करता है; जबकि वह खुद मुसलमान नहीं है, क्योंकि इस्लाम में किसी को इजाजत नहीं दी गई है कि वह किसी की हत्या करे। अब्बास तो यहां तक कहते हैं कि तालीबान को पाकिस्तान का सपोर्ट है। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान के पीछे चीन, इजरायल और अमेरिका जैसे देश हैं। जैसे आइएसआइएस पर ईरान ने ईराक में घूसकर हमला किया और बेकसूर लोगों को बचाया। उसी तरह भारत और ईरान को अफगानिस्तान के लोगों को बचाने के लिए कदम उठाना चाहिए।
जमाते इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजिनियर मोहम्मद सलीम का कहना है कि अफगानिस्तान में तालीबान के आने को लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिर भी एक बात बड़ी साफगोइ के साथ उन्होंने कहा है कि जिस तरह अमेरिका दो दशक से अफगानिस्तान में अपनी ताकत का एहसास करा रहा था,उसे तालीबान के आने से करारी मात का सामना करना पड़ा है। इस जीत को उन्होंने अफगान की जीत बताया है।ऐसे में यह उनका अधिकार है कि वे अपने यहां कैसी सरकार चाहते हैं। तालीबान कैसे हुकुमत करता है,किस तरह से काम करता है यह देखना पड़ेगा। तब जाकर तालीबान के विषय में कोई विचार कायम करना उचित होगा।
जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव नियाज़ फारुकी कहते हैं कि हम बस यही चाहते हैं कि हमारे पड़ोस में अमन और शांति बरकरार रहे। तालीबान इस बार जिसतरह बिना खून खराबा के आये हैं उससे यह उम्मीद बंधती है कि वहां अमन और शांति वाली सरकार बने। अमेरिका का अफगानिस्तान से जाने की बात को उन्होंने एक अच्छी बात बताई है। उन्होंने आगे कहा है कि तालीबान को भारत के साथ अच्छा रिश्ता और व्यवहार बनाकर रखना चाहिए। क्योंकि भारत हमेशा अफगानिस्तान की मदद करता रहा है।
एआईएमआई के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष हिलाल मलिक कहते हैं कि हमारा नजरिया भारत के विदेश नीति के साथ है। अफगानिस्तान में अशरफ गनी की जो सरकार थी उसे भारत का पूरा सपोर्ट था। भारत ने अफगानिस्तान में अच्छा खासा इन्वेस्टमेंट कर रखा है और वहां के विकास में भारत का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में चाहे जो भी सरकार आये भारत को उसके साथ बेहतर संबंध बनाकर रखना चाहिए।
देखा जाए तो जितने लोग उतनी बातें वाली कहावत यहां लागू हो रही है। लेकिन सबका निचोड़ यह है कि भारत सरकार को स्थिति पर पैनी नजर रखनी होगी। आगे जो कुछ भी अफगानिस्तान में होगा उसपर निर्भर करेगा कि भारत को क्या कदम उठाना चाहिए।
जे.पी.श्रीवास्तव,
ब्यूरो चीफ, बिहार।
